ज़िन्दगी पर्वतों की मोहताज़ नहीं
कि मुश्किलें तो पानी सी बहती है।
ज़रूरत नहीं नवासी को आबरू बचाने की
कि यहां तो आंखों से भी बलात्कार होता है।
संसार में अब राम की अहमियत नहीं
कि हर घर में एक रावण बस्ता है।
और क्या ज़रूरत पड़ी कुरीतियों को सुधारने की
कि दरिंदगी तो हर मन में रहती है।
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