वो चीखती चिल्लाती रही
इज़्ज़त बचाने के लिए गुहार लगाती रही
लाखों की भीड़ में भी एक हाथ आगे न आया
उसकी नंगी आबरू देख किसी को तरस न आया।
लूटा न गया था सिर्फ उसका जिस्म
उस दिन एक लड़की की रूह को नोचा गया था
कांपती रही गिड़गिड़ाती रही घर जाने को मिचलाती रही
उसी नहीं पता था उस दिन उसे समाज से निकाला गया था।
अपने ही बाप भाई से कतराने लगी थी
जीने की आस तो दूर उसे मरने में शर्म आनी लगी थी
काँप गयी समाज की असलियत देखकर
अपने लड़की होने पर उसे घिन्न आने लगी थी।
सह न सकी ज़लालत हर दिन नज़रें घूरती रहीं
हर उठती आवाज़ पर वो अपनी माँ के आंचल में छुपती रही
कुछ वक्त की हवस ने इंसानियत को शर्मसार कर दिया
नतीज़न एक बाप ने अपनी बेटी को मौत के घाट उतार दिया।
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